बुधवार, 25 दिसंबर 2013


कैसे हो बुराँश ....?
तुम तो रोडोडैन्ड्रान हो गए
एन आर आई हुए
या फिर
ग्लोबलाइजेशन का भूत हुआ सवार
भूल गए
....
इजर की ढालू जमीन
वो ग्वाले और ग्वालदेवता
फुलद्योली पर इठलाना
वो ढाड़गोठ की द्योली पर सजना
बैंगनी होंठों वाले बच्चे
वो गधेरे में बांज काफल
वो बिरखम
वो अशीका
और पालौं के बीच से
तुम्हारा दुनला होकर झाँकना
सब भूल गए
....?
अब तो सुर्ख़ियों में ही
ज्यादा सुर्ख रहते हो ।

- बस करो
में खण्डित तरुखंड
रुदित रुगन्वित हूँ

कहीं  पीयर कहीं रक्तिम
जलप्रपा ही नहीं
जलावन भी हूँ
हाँ
.... बुराँश हूँ मैं
उत्तरपूर्वी नहीँ
उत्तरजीवी हूँ मैं
चंद रोज का सफर
नहीं है मेरा
मैंने देखा है बचपन
सदियों का
सभ्यताओं का
तुम्हारी थोकदारी का
फिरंगियों की खोजयात्राओं  का
तुम्ही ने नाम दिए
सार्वभौमिकता के लिए
मेरी डालों में पैर रखकर
तुम्ही एन आर आई बने
मुझ पर
गैरजमीनी मुद्दे हैं
विषयवस्तुता है
तुम्हारे लेखों की
कविताओं की
लोकगीतों की
....
तुम्हारे कटाक्ष
तुम्हारे धनाड्य संगठन
तुम्हारी कुल्हाड़ी का पैनापन
तुम्हारी असीमित उत्कंठाएँ
और इन सब से बढ़कर
तुम्हारी इन्सान होने की सनक
मुझ पर रोज होते व्याख्यान
बहसें
वो ए सी चैम्बर
वो शीशम की गोल टेबल
बिसलेरी
एक्वाफिना
कुछ भी तो नहीं  भूला मैं
और शायद
....
तुम भी नहीं भूले हो
क्यों
....?
बहुत मीठा होता है ना
....
मेरे आँसुओं का शर्बत
 



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