चाय जब नहीं रहेगी
गर्म
शीशे के गिलास में
तब उठ जायेंगे दोस्त
और समेट लेंगे
अपनी चुहलबाजियाँ
शीशे के गिलास में
तब उठ जायेंगे दोस्त
और समेट लेंगे
अपनी चुहलबाजियाँ
पैसा तब भी होगा
जब दोस्त नहीं होंगे आस-पास
बस मोबाईल ही होगा साथ
एक सिगरेट
एक गिलास चाय
के हट जाने से
बन जाएगी दुनिया अजनबी
या आभासी
तब दोस्त उठा लेंगे अपने ताम -तोपड़े
और हो जायेंगे विदा
पहने हुए लबादे जब
दाखिल होंगे
वह हमारी दुनिया के बाहर
मशीनों के भीतर!
तब भी जलेंगे फेफड़े
साँस लेने में होगी दिक्कत!
जब दोस्त नहीं होंगे आस-पास
बस मोबाईल ही होगा साथ
एक सिगरेट
एक गिलास चाय
के हट जाने से
बन जाएगी दुनिया अजनबी
या आभासी
तब दोस्त उठा लेंगे अपने ताम -तोपड़े
और हो जायेंगे विदा
पहने हुए लबादे जब
दाखिल होंगे
वह हमारी दुनिया के बाहर
मशीनों के भीतर!
तब भी जलेंगे फेफड़े
साँस लेने में होगी दिक्कत!
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