पहाड़
लपेटे हुए सफ़ेद, हरी चादर
बुलंद और अडिग दिखता है
पर अन्दर से बिलकुल खाली हो गया है
और भर रहा है बाहर से
करोड़ों साल से पहाड़ खड़ा है अपनी जगह
कभी थका नहीं
लेकिन अब थकने लगा है मनुष्यों के भार की वजह से
अपने ह्रदय में एक टीस लिए इंतजार करता है कि
एक छोटी सी प्लेट उसके भीतर की टूटे
और सरक जाये कुछ आगे
हो सकता है बाँट जाए दो हिस्सों में
कर दे सब कुछ तहस-नहस
पहाड़
कभी ऐसा चाहता नहीं था पर कर दिया है विवस उसे मनुष्यों ने
वह दूर करना चाहता है अपने मन की वेदना
जो दी है मनुष्यों ने उसे
काट के जंगल, काट के पहाड़
छीन के वस्त्र पहाड़ के
पहाड़ जो कभी अदम्य सहस अडिगता की मिसाल था
आज इंतजार कर रहा है अपने अन्दर की
कोई एक प्लेट टूटने का.
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