फूलों की खुशबू,
बारिश की बूंदों का नृत्य,
आँगन में चहचहाती
चिडियाँ की चूं-चूं
कोयल की कूँ-कूँ
शाखों पर लचकते आमों की
अंगड़ाई को महसूस करना उतना ही जरुरी है
जितना पेट की भूख और प्यास....
प्रेम के तमाम एहसासों को
कागजों पर उडेलना उतना ही जरुरी है
जितना घर की दीवारों पर
सुन्दर तस्वीरें टांगना, रंग-रोगन करना....
ख्वाबों की खिडकी से भीतर झांकना उतना ही जरुरी है,
जितना चाय में इलायची पीसकर डालना....
दर-असल हम नहीं लिखते
कुछ भी नहीं लिखते
दीवारें लिखवा जाती हैं...
उम्र और हालात अक्सर
कलम को ऊँगली पकड़कर चलना सिखाते हैं...
तमाम एहसासों की खुमारी में चूर होकर
हम अक्सर कागजों की पुताई करते हैं.....
ठीक वैसे ही जैसे घर को सुन्दर रखना जरुरी होता है....
नकली फूलों के गुलदस्ते रखने की आदत
कभी हमारा पीछा नहीं छोडती
नाटकीयता हमारे भीतर
इस तरह समां गयी है कि
सजीवता लाने की बेकार धुन में,
हम छिड़क देते हैं थोड़ा सा परफ्यूम उन फूलों में....
यह ठीक वैसे ही है,
जैसे घर की खिड़कियों पर रंग-बिरंगे परदे टांगना,
हमारी प्रेम कवितायेँ
ठीक वैसी हैं
जैसे
किसी झुग्गी के सामने खड़ा आलिशान महल.!
बारिश की बूंदों का नृत्य,
आँगन में चहचहाती
चिडियाँ की चूं-चूं
कोयल की कूँ-कूँ
शाखों पर लचकते आमों की
अंगड़ाई को महसूस करना उतना ही जरुरी है
जितना पेट की भूख और प्यास....
प्रेम के तमाम एहसासों को
कागजों पर उडेलना उतना ही जरुरी है
जितना घर की दीवारों पर
सुन्दर तस्वीरें टांगना, रंग-रोगन करना....
ख्वाबों की खिडकी से भीतर झांकना उतना ही जरुरी है,
जितना चाय में इलायची पीसकर डालना....
दर-असल हम नहीं लिखते
कुछ भी नहीं लिखते
दीवारें लिखवा जाती हैं...
उम्र और हालात अक्सर
कलम को ऊँगली पकड़कर चलना सिखाते हैं...
तमाम एहसासों की खुमारी में चूर होकर
हम अक्सर कागजों की पुताई करते हैं.....
ठीक वैसे ही जैसे घर को सुन्दर रखना जरुरी होता है....
नकली फूलों के गुलदस्ते रखने की आदत
कभी हमारा पीछा नहीं छोडती
नाटकीयता हमारे भीतर
इस तरह समां गयी है कि
सजीवता लाने की बेकार धुन में,
हम छिड़क देते हैं थोड़ा सा परफ्यूम उन फूलों में....
यह ठीक वैसे ही है,
जैसे घर की खिड़कियों पर रंग-बिरंगे परदे टांगना,
हमारी प्रेम कवितायेँ
ठीक वैसी हैं
जैसे
किसी झुग्गी के सामने खड़ा आलिशान महल.!
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