बुधवार, 25 दिसंबर 2013

ये खोद देते हैं
कूल्हों से बड़ा सा गड्डा
आकाश से बड़ा गड्डा !
समा सकता है जिसमें पूरा समुद्र
आकाश को गड्डा बताना भ्रामक लग सकता है,
पर ऐसा  नहीं है
इसका सही जवाब दे सकता है,
सुहाने ग्रीष्म में पेड़ तले बैचेन पड़ा परकशिया
और चौमास में घर के सरे बर्तनों को टपकती छत के नीचे लगा
सारी रात उन्हें बदलने का उत्साही खेल खेलता चेतराम!
खैर ! बात/तारीफ आकाश या गड्डे की नहीं
उनके खोदते कूल्हों की है
हाथ पैर गैंडी बारूद के गड्डे पुराने हो गये
अब उनके बैठते ही कुर्सी पर
जमीं  में शुरू हो जाता है गड्डा खुदना
धरा आर्तनाद  के साथ उगल देती है
हीरा, सोना, कोयला , मिट्टी, पत्थर, जडी बूटियाँखड़िया 
 कुछ  भी जो हो उसके पास
जो भर सके उन गड्डों  को
रोक सके शायद उन लालसा भरे कूल्हों को और खोदने से...!

 

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